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Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी। भूतनी का बदला

Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी।भूतनी का बदला।


नमस्कार दोस्तों, आज जो Excited Indian के द्वारा कहानी लिखा जा रहा है। ये कहानी जो लिखा गया है। लेकिन जब आप इसे शरु से लेकर अंत तक पढ़ेंगे तो आपको बिल्कुल Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी के जैसा अहसास होगा। क्योंकि इस प्रकार से इसे लिखा ही गया है। भुतनी का बदला कोई कहानी नहींं बल्कि एक Asli Bhutiya Kahani असली भुतिया कहानी है। 


तो चलिए इस कहानी को शुरु करते है:-


बात बहुत ही पुरानी है। किसी पर्वत की तलहटी में रमेसरपुर नाम का एक बहुत ही रमणीय गाँव था। इस गाँव के मुखिया रमेसर काका थे। सभी गाँववासी रमेसर काका की बहुत ही इज्जत करते थे और उनके विचारों, सुझावों को पूरी तरह मानते थे। रमेसर काका की एक ही संतान थी, चंदा। 15-16 की उम्र में भी चंदा का नटखटपन गया नहीं था। वह बहुत ही शरारती थी,  


Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी। Excited Indian
Asli Bhutiya Kahani


उसके चेहरे पर कहीं भी षोडशी का शर्मीलापन नजर नहीं आता पर हाँ उसके चेहरे से उसका भोलापन जरूर छलकता। उस समय हर माँ-बाप की बस एक ही ख्वाइश होती थी कि उनकी लड़की को अच्छा घर-वर मिल जाए और वह अपने ससुराल में खुश रहे। रमेसर काका भी चंदा के लिए आस-पास के गाँवों वरदेखुआ बनकर जाना शुरू कर दिए थे।


एक बार पास के एक गाँव के उनके मुखिया मित्र ने कहा कि उनकी नजर में एक लड़का है, अगर आप तैयार हों तो मैं बात चलाऊँ? रमेसर काका के हाँ करते ही उनके मुखिया मित्र की अगुआई में चंदा का विवाह तय हो गया। चंदा का पति नदेसर उस समय कोलकाता में कुछ काम करता था। नदेसर देखने में बहुत ही सीधा-साधा और सुंदर युवक था। वह रमेसर काका को पूरी तरह से भा गया था। 




खैर शादी हुई और रमेसर काका ने नम आँखों से चंदा को विदा किया। कुछ ही दिनों में चंदा अपने ससुराल में भी सबकी प्रिय हो चुकी थी। 1-2 महीना चंदा के साथ बिताने के बाद नदेसर भारी मन से कोलकाता की राह पर निकल पड़ा। चंदा ने नदेसर को समझाया कि कमाना भी जरूरी है और 5-6 महीने की ही तो बात है, दिवाली में आपको फिर से घर आना ही है, तब तक मैं नजरें बिछाए आपका इंतजार प्रसन्न मन से कर लूँगी।


कोलकता पहुँचने पर नदेसर ने फिर से अपना काम-धंधा शुरू किया पर काम में उसका मन ही नहीं लगता था। बार-बार चंदा का शरारती चेहरा, उसके आँखों के आगे घूम जाता। वह जितना भी काम में मन लगाने की कोशिश करता उतना ही चंदा की याद आती। नदेसर की यह बेकरारी दिन व दिन बढ़ती ही जा रही थी। उसने अपने दिल की बात अपने साथ काम करने वाले अपने 5 मित्रों को बताई। ये पाँचों उसके अच्छे मित्र थे। 


Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी। Excited Indian
Asli Bhutiya Kahani


नदेसर दिन-रात अपने इन पाँचों दोस्तों से चंदा की खूबसूरती और उसके शरारतीपन का बखान करता रहता। पाँचों मित्र चंदा के बारे में सुन-सुनकर उसकी खूबसूरती की एक छवि अपने-अपने मन में बना लिए थे और अब बार-बार नदेसर से कहते कि भाभी से कब मिलवा रहे हो। नदेसर कहता कि मैं तो खुद ही उससे मिलने के लिए बेकरार हूँ पर समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे मिलूँ?


खैर अब नदेसर के पाँचों दोस्तों के दिमाग में जो एक भयानक, घिनौनी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी उससे नदेसर पूरी तरह अनभिज्ञ था। उसके पाँचों दोस्तों ने एक दिन नदेसर से कहा कि यार, भाभी को यहीं ले आओ। कुछ दिन रहेगी, कोलकता भी घूम लेगी तो उसको बहुत अच्छा लगेगा और फिर 1-2 हफ्ते में उसे वापस छोड़ आना। पर नदेसर अपने बूढ़े माँ-बाप को यादकर कहता कि नहीं यारों, मैं ऐसा नहीं कर सकता, मेरी अम्मा और बाबू की देखभाल के लिए गाँव में चंदा के अलावा और कोई नहीं है।


कुछ दिन और बीते पर ये बीतते दिन नदेसर की बेकरारी को और भी बढ़ाते जा रहे थे। अब तो नदेसर का काम में एकदम से मन नहीं लग रहा था और उसे बस गाँव दिखाई दे रहा था। एक दिन रात को नदेसर के पाँचों दोस्तों ने नदेसर से कहा कि चलो हम लोग तुम्हारे गाँव चलते हैं। नदेसर अभी कुछ समझ पाता या कह पाता तबतक उसके उन पाँच दोस्तों में से निकेश नामक दोस्त ने कहा कि यार टेंसन मत ले। कह देना कि अभी काम की मंदी चल रही है इसलिए गाँव आ गया।


 और साथ ही इसी बहाने हम मित्र लोग भी तुम्हारा गाँव देख लेंगे और भाभी के साथ ही तुम्हारे माता-पिता से भी मिल लेंगे क्योंकि हम लोगों का तो गाँव भी नहीं है। इसी कोलकते में पैदा हुए और कोलकते को ही अपना घर बना लिए। हम लोग भी चाहते हैं कि कुछ दिन गँवई आबोहवा का आनंद लें। नदेसर तो घर जाने के लिए बेकरार था ही, उसे अपने दोस्तों की बात भली लगी। फिर क्या था दूसरे दिन ही नदेसर अपने उन पाँच दोस्तों के साथ अपने गाँव के लिए निकल पड़ा। उसके गाँव के आस-पास में बहुत सारे घने जंगल थे।




इस पर्वतीय इलाके के इन पहाड़वासियों के अलावा अगर कोई अनजाना जा जाए तो वह जरूर रास्ता भटक जाए और हिंसक जानवरों का शिकार बन जाए। टरेन और बस की यात्रा करते-करते आखिरकार नदेसर अपने पाँच दोस्तों के साथ अपने गाँव के पास के एक छोटे से बस स्टेशन पर पहुँच ही गया। इस स्टेशन से उसके गाँव जाने के लिए अच्छी कच्ची सड़क भी न थी। जंगल में चलने से बने पगडंडियों से, उबड़-खाबड़ रास्ते से होकर जाना पड़ता था।


जंगल में चलते-चलते जब नदेसर से निकेश ने पूछा कि भाई नदेसर अभी तुम्हारा गाँव कितनी दूर है तो नदेसर ने प्रसन्न होकर कहा कि यार अब हम लोग पहुँचने ही वाले हैं। नदेसर की बात सुनते ही निकेश हाँफने का नाटक करते हुए वहीं बैठते हुए बोला कि यार अब मुझसे चला नहीं जाता। उसकी बात सुनते ही नदेसर ने कहा कि यार हम लोग पहुँच गए हैं और अब मुश्किल से 5 मिनट भी नहीं लगेंगे। पर नदेसर की बातों को अनसुनी करते हुए उसके अन्य चार दोस्त भी निकेश के पास ही बैठ गए। अब नदेसर बेचारा क्या करे, उसे भी रूकना पड़ा।


 नदेसर के रूकते ही निकेश ने अपने हाथ में लिए झोले में से एक अच्छी नई साड़ी और साथ ही चूड़ी आदि निकालते हुए कहा कि यार नदेसर, हम लोग भाभी से पहली बार मिलने वाले हैं, इसलिए उसके लिए कुछ उपहार लाए हैं। उसकी बात सुनते ही नदेसर ने कहा कि यारों इसकी क्या जरूरत थी। पर निकेश ने हँसकर कहा कि जरूरत थी भाई, हमारी भी तो भाभी है, हम पहली बार उससे मिल रहे हैं, तो बिना कुछ दिए कैसे रह सकते हैं। इसके बाद निकेश ने कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाते हुए नदेसर से कहा कि यार नदेसर, क्यों न भाभी को सरप्राइज दिया जाए। 


एक काम करो, तुम घर जाओ और बिना किसी को बताए भाभी को घुमाने के बहाने यहाँ लाओ, हम लोग यहाँ भाभी को यह सब उपहार दे देंगे और उसके बाद फिर से तुम दोनों के साथ तुम्हारे घर चल चलेंगे। भोला नदेसर हाँ में हाँ मिलाते हुए तेज कदमों से घर की ओर गया और लगभग 30-40 मिनट के बाद चंदा को लेकर दोस्तों के पास वापस आ गया। फिर क्या था, चंदा से वे पाँचों दोस्त एकदम से अपनी भाभी की तरह मिले। चंदा को भी बहुत अच्छा लगा। इसके बाद जब चंदा ने उन्हें घर चलने के लिए कहा तो अचानक उनके तेंवर थोड़े से बदले नजर आए।




निकेश और नदेसर के अन्य चार दोस्त चंदा और नदेसर के पास पूरी सख्ती से खड़े हो गए थे। चंदा और नदेसर कुछ समझ पाते इससे पहले ही निकेश ने दाँत भींजते हुए तेज आवाज में नदेसर से कहा कि साले, मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता था पर तुम बिना बताए गाँव आकर अपनी कर लिए। उसकी बात सुनकर नदेसर ने भोलेपन से कहा कि निकेश भाई, आपने तो कभी हमसे अपनी बहन की शादी के बारे में बात भी नहीं की थी और जब मैं घर आया था तो यहाँ माँ-बाबू ने शादी कर दिया था।


 भला मैं उन्हें मना कैसे कर सकता था। पर नदेसर की इन भोली बातों का उन पाँच दैत्यों पर कोई असर नहीं हुआ। उनमें से दो ने नदेसर को कसकर पकड़ लिए थे और तीन चंदा का चीरहरण करने लगे थे। अभी नदेसर या चंदा चिल्लाकर आवाज लगा पाते इससे पहले ही उन दोनों के मुँह में कपड़े थूँस दिए गए। फिर निवस्त्र चंदा और घनेसर को उठाकर वे लोग कुछ और घने जंगल में ले गए। घने जंगल में ले जाकर उन लोगों ने नदेसर की हत्या कर दी और चंदा की इज्जत से खेल बैठे। 


लगभग वे पाँचो नरपिशाच घंटों तक चंदा को दागदार करते रहे, वह चिल्लाती रही, भीख माँगती रही पर उन भेड़ियों पर कोई असर नहीं हुआ। अंततः अपनी वाली करने के बाद उन पाँचों ने चंदा को भी मौत के घाट उतारकर, वहीं जंगल में सुखी पत्तियों में उन्हें ढँककर आग लगा दिए।


आग लगाने के बाद ये पाँचो दोस्त जिधर से आए थे, उधर को भाग निकले। जंगल जलने लगा और जलने लगे चंदा और नदेसर के जिस्म। सब कुछ स्वाहा हो गया था। इस आग से आस-पास के गाँववालों को कुछ भी लेना देना नहीं था, क्योंकि जंगल में आग लगना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। कभी भी कोई भी अपनी लंठई में जंगल में आग लगा दिया करता था।


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धीरे-धीरे समय बीतने लगा। रात तक जब चंदा और नदेसर घर नहीं आए तो नदेसर के पिताजी ने नदेसर के आने और चंदा को लेकर जाने की बात अपने पड़ोसियों को बताई। उसी रात को नदेसर और उनके कुछ पड़ोसी मशाल लेकर चंदा और नदेसर को खोजने निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद भी इन दोनों का पता नहीं चला। दूसरे दिन सुबह पुलिस में खबर दी गई पर पुलिस भी क्या करती। थोड़ा-बहुत छानबीन की पर उन दोनों का कोई पता नहीं। अब नदेसर के माँ-बाप और गाँववालों को लगने लगा था कि नदेसर अपनी बहुरिया को लेकर बिना बताए कोलकाता चला गया। 


शायद उसे डर था कि अगर बाबू को बताकर ले जाएँगे तो वे ले जाने नहीं देंगे। आखिर कोलकाता में नदेसर कहाँ रहता है, क्या करता है, इन सब बातों के बारे में भी नदेसर के माता-पिता और गाँववालों को बहुत कम ही पता था। धीरे-धीरे करके 8-9 महीने बीत गए। अब नदेसर के माता-पिता बिना नदेसर और चंदा के जीना सीख गए थे।




इधर कोलकाता में एक दिन अचानक निकेश के घर पर कोहराम मच गया। हुआ यह था कि किसी ने बहुत ही बेरहमी से उसके गुप्तांग को दाँतों से काट खाया था, उसके शरीर पर जगह-जगह भयानक दाँतों के निशान भी पड़े थे और वह इस दुनिया को विदा कर गया था। पुलिस के पूछताझ में उसके घरवालों ने बताया कि पिछले 1 महीने से निकेश का किसी लड़की के साथ चक्कर था। वे दोनों बराबर एक दूसरे से मिलते थे पर लड़की कौन थी, कैसी थी, किसी ने देखा नहीं था। पर इसी दौरान पुलिस को निकेश की बहन से एक अजीब व डरावनी बात पता चली। 


निकेश की बहन ने बताया कि एक दिन जब निकेश घर से निकला तो वह भी पीछे-पीछे हो ली थी। निकेश बस्ती से निकलकर एक सुनसान रास्ते में बनी एक पुलिया पर बैठ गया था। वहाँ से मैं लगभग 20 मीटर की दूरी पर एक बिजली के खंभे की आड़ में खड़ा होकर उसपर नजर रख रही थी। मुझे बहुत ही अजीब लगा क्योंकि ऐसा लग रहा था कि निकेश किसी से बात कर रहा है, किसी को पुचकार रहा है पर वहाँ तो निकेश के अलावा कोई था ही नहीं। फिर मुझे लगा कि कहीं निकेश भइया पागल तो नहीं हो गए हैं न। 


Asli Bhutiya Kahani। असली भुतिया कहानी। Excited Indian
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अभी मैं यही सब सोच रही थी तभी एक भयानक, काली छाया मेरे पास आकर खड़ी हो गई। वह छाया बहुत ही भयानक थी पर छाया तो थी पर छाया किसकी है, यह समझ में नहीं आ रहा था। मैं पूरी तरह से डर गई थी। फिर अचानक वह छाया अट्टहास करने लगी और चिल्लाई, “अब तेरा भाई नहीं बचेगा। नोचा था न मुझे, मैं भी उसे नोच-नोचकर खा जाऊँगी। और हाँ एक बात तूँ याद रख, अगर यह बात किसी को भी बताई तो मैं तेरे पूरे घर को बरबाद कर दूँगी।” इतना कहते ही निकेश की बहन सुबक-सुबक कर रोने लगी।


इतना सुनते ही पुलिस और आस-पास जुटे लोग सकते में आ गए और पूरी तरह से डर भी गए। क्योंकि निकेश का जो हाल हुआ था, वह यह बयाँ कर रहा था कि इसके साथ जो हुआ है वह किसी इंसान ने नहीं अपितु भूत-प्रेत ने ही किया होगा। यह कहानी यहीं समाप्त होती है। पर इसके अगले भाग के रूप में एक कहानी और आ सकती है कि क्या निकेश का यह हाल किसी भूत-भूतनी ने ही ऐसा किया था या किसी और ने। कहीं चंदा तो नहीं या नदेसर? निकेश के अन्य चार दोस्तों के साथ भी कुछ हुआ क्या?


तो दोस्तो, उम्मीद करता हुँ कि आपको यह कहानी पसंद आया होगा। इस कहानी को पुरा पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अगर आपको यह कहानी पसंद आया है तो आप इसे शेयर जरुर करें।

धन्यावाद...


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