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विद्यार्थी के लिए कहानी Prernadayak Kahani For Students - Excited Indian

प्रेरणादायक कहानी विद्यार्थी के लिए (Prernadayak Kahani For Students)


अहंकार छोड़िये और सीखना शुरू कीजिए 

दोस्तों, यह प्रेरणादायक कहानी विद्यार्थी के लिए है। (Prernadayak Kahani For Students) | इस कहानी में मैंने बताया है कि किसी भी विधार्थी को अपने शुरुआत के जीवन में अहंकार नहीं करना चाहिये बल्कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा सिखने पर ध्यान देना चाहिए। 

अगर आप इस कहानी तक किसी भी तरह से आ गये है तो बस 2 मिनट इसे पढ़ लिजिए। मैं आप्को पुरे यकिन के साथ कहता हु कि आपको कुछ न कुछ नया सिखने जरुर मिलेगा। क्योंकि हर इंसान को पुरी जिंदगी भर एक आदर्श विद्यार्थी बन कर रहना चाहिए और कुछ न कुछ सिखते रहना चाहिए।



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Prernadayak Kahani For Students 



तो चलिए दोस्तों इस कहानी को शुरु करते है:-


रती पर जन्म लेने के साथ ही सीखने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है ज्यों हम बड़े होते जाते हैं, सीखने की प्रक्रिया भी विस्तार लेती जाती है, जल्द ही हम उठना, बैठना, बोलना, चलना सीख लेते हैं। इस बड़े होने की प्रक्रिया के साथ ही कभी-कभी हमारा अहंकार हमसे अधिक बड़ा हो जाता है और तब हम सीखना छोड़कर गलतियां करने लगते हैं।


यह अंहकार हमारे विकास मार्ग को अवरूद्ध कर देता है इस बात की चर्चा करते हुए मुझे एक वाकिया याद आ रहा है जिसकी चर्चा यहाँ करना अच्छा होगा।


एक बार की बात है रूस के ऑस्पेंस्की नाम के महान विचारक एक बार संत गुरजियफ से मिलने उनके घर गए। दोनों में विभिन्न् विषयों पर चर्चा होने लगी। ऑस्पेंस्की ने संत गुरजियफ से कहा, यूं तो मैंने गहन अध्ययन और अनुभव के द्वारा काफी ज्ञान अर्जित किया है, किन्तु मैं कुछ और भी जानना चाहता हूं।



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आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं? गुरजियफ को मालूम था कि ऑस्पेंस्की अपने विषय के प्रकांड विद्वान हैं, जिसका उन्हें थोड़ा घमंड भी है अतः सीधी बात करने से कोई काम नहीं बनेगा। इसलिए उन्होंने कुछ देर सोचने के बाद एक कोरा कागज उठाया और उसे ऑस्पेंस्की की ओर बढ़ाते हुए बोले- ''यह अच्छी बात है कि तुम कुछ सीखना चाहते हो।



लेकिन मैं कैसे समझूं कि तुमने अब तक क्या-क्या सीख लिया है और क्या-क्या नहीं सीखा है। अतः तुम ऐसा करो कि जो कुछ भी जानते हो और जो नहीं जानते हो, उन दोनों के बारे में इस कागज पर लिख दो। जो तुम पहले से ही जानते हो उसके बारे में तो चर्चा करना व्यर्थ है और जो तुम नहीं जानते, उस पर ही चर्चा करना ठीक रहेगा।''



बात एकदम सरल थी, लेकिन ऑस्पेंस्की के लिए कुछ मुश्किल। उनका ज्ञानी होने का अभिमान धूल-धूसरित हो गया। ऑस्पेंस्की आत्मा और परमात्मा जैसे विषय के बारे में तो बहुत जानते थे, लेकिन तत्व-स्वरूप और भेद-अभेद के बारे में उन्होंने सोचा तक नहीं था।



गुरजियफ की बात सुनकर वे सोच में पड़ गए। काफी देर सोचने के बाद भी जब उन्हें कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने वह कोरा कागज ज्यों का त्यों गुरजियफ को थमा दिया और बोले- श्रीमान मैं तो कुछ भी नहीं जानता। आज आपने मेरी आंखे खोल दीं। ऑस्पेंस्की के विनम्रतापूर्वक कहे गए इन शब्दों से गुरजियफ बेहद प्रभावति हुए और बोले - ''ठीक है, अब तुमने जानने योग्य पहली बात जान ली है कि तुम कुछ नहीं जानते।



यही ज्ञान की प्रथम सीढ़ी है। अब तुम्हें कुछ सिखाया और बताया जा सकता है। अर्थात खाली बर्तन को भरा जा सकता है, किन्तु अहंकार से भरे बर्तन में बूंदभर ज्ञान भरना संभव नहीं। अगर हम खुद को ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार रखें तो ज्ञानार्जन के लिये सुपात्र बन सकेंगे।



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ज्ञानी बनने के लिए जरूरी है कि मनुष्य ज्ञान को पा लेने का संकल्प ले और वह केवल एक गुरू से ही स्वयं को न बांधे बल्कि उसे जहां कहीं भी अच्छी बात पता चले, उसे ग्रहण करें।''



दोस्तों, अगर आप इस कहानी को यहाँ तक पढ़े है तो मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद देता हुँ। और मैं ये बात पुरे यकिन के साथ कह्ता हुँ कि अगर आप इस कहानी (Prernadayak Kahani For Students) को शुरु से लेकर अंत तक बिल्कुल ध्यान से पढ़े है तो आपको कुछ नया सिखने को जरुर मिला होगा।



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तो चलिए दोस्तों, आज के लिए बस इतना ही।


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धन्यावद...


और अधिक जानकारी के लिए इस कहानी को जरुर पढ़े।


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