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Horror Story Sachchi Ghatna। हॉरर स्टोरी सच्ची घटना।

Horror Story Sachchi Ghatna। हॉरर स्टोरी सच्ची घटना। प्रेत को सजा


नमस्कार दोस्तों, आज इस Horror Story Sachchi Ghatna। हॉरर स्टोरी सच्ची घटना में आप पढेंगे कि किस प्रकार एक प्रेत को सज दिया जाता है। कहानी शुरु करने से पहले आपको सिर्फ एक ही बात कहना चहुंगा कि आप इसे शुरु से अंत तक मात्र 5 से 7 मिनट का समय देकर जरुर पढ़ें। तभी आपको इस कहानी का असली मज मिल पायेगा।


तो चलिए इस Horror Story Sachchi Ghatna। हॉरर स्टोरी सच्ची घटना को शुरू करते है:-


Horror Story Sachchi Ghatna। हॉरर स्टोरी सच्ची घटना। Excited Indian
Horror Story Sachchi Ghatna


भोजपुरी में एक कहावत है कि भाग्यशाली का हल भूत हाँकता है खैर यह तो एक कहावत है पर अगर कभी ऐसा हो जाए कि कोई प्रेत 24सों घंटा आपकी सेवा में हाजिर हो जाए तो आपको कैसा लगेगा? अगर आप किसी ऐसे बिगड़ैल, भयानक प्रेत को डाँटकर अपना काम कराएँ जिसे देखकर अच्छे-अच्छों की धोती गीली हो जाए तो इससे आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है। पर हाँ यह कहानी कुछ ऐसी ही है।


एक किसान कैसे एक प्रेत को अपने बस में करके अपना बहुत सारा काम कराता था, कैसे कभी-कभी वह प्रेत अपने प्राणों की भीख माँगते हुए गिड़गिड़ाता था। आखिर यह प्रेत उस किसान के चंगुल में फँसा कैसे?  


क्या उसकी कोई मजबूरी थी या किसान ने कोई तंत्र-मंत्र करके उसे अपने बस में कर लिया था? खैर इन सब रहस्यमयी बातों से परदा उठाने के लिए सीधे कहानी पर ही आ जाते हैं। बात तब की है जब रमेसर काका गबड़ू जवान थे। रमेसर काका के पिताजी एक छोटे-मोटे किसान थे और खेती-किसानी के लिए एक जोड़ी बैल हमेशा रखते थे। 


उनका मानना था कि अगर खेती अच्छी करनी है तो एक जोड़ी अच्छे बैल हमेशा दरवाजे पर होने ही चाहिए। उस समय रमेसर काका भी खेती-बारी के साथ ही कुछ और छोटे-मोटे कामों में अपने पिताजी की मदद करते रहते थे। ऊँखीबवगा (ऊँख बुआई) से लेकर बियाड़ (धान के बीज का खेत) बनाने तक, कोल्हुआड़ में गन्ने की पेराई से लेकर गुलवर झोंकाई तक, हर काम रमेकर काका बखूबी करते थे। 


एक बार की बात है कि रमेसर काका को अपने टायर (बैलगाड़ी) पर भूसा लादकर अपने एक बहनोई के वहाँ पहुँचाना था। दरअसल उनके बहनोई का गाँव एक नदी के खलार में पड़ता था जिससे वहाँ धान, गेहूँ आदि नहीं हो पाता था, जिसके चलते पशुओं को चारे के लाले पड़ जाते थे।  


 इसलिए हर साल रमेसर काका अपनी बैलगाड़ी पर भूसा, पुआल आदि लादकर इनके यहाँ पहुँचा दिया करते थे। दिन ढल चुका था और बैलगाड़ी पर भूसा भी लद चुका था। रमेसर काका नहा-धोकर शाम को लगभग सात बजे बैलगाड़ी लेकर निकले। उन्हें अपने बहनोई के वहाँ जाने में लगभग पूरी रात का समय लगता था और सुबह 4-5 बजे पहुँचते थे।




 उन्होंने एक बाल्टी, एक लोटा और एक डोर अपने पास रख ली थी तथा साथ ही बैलों को खाने के लिए एक झोली में गेड़ की छाँटी भी। रमेसर काका के बैल बहुत ही समझदार थे, जब वे एक बार रास्ते पर चल पड़ते थे तो गड़ुआन को काफी आराम मिलता था क्योंकि ये बैल बिना हाँके बराबर चलते ही रहते थे। इससे रमेसर काका को बार-बार न बैलों को हाँकना पड़ता था और ना ही सामने से किसी गाड़ी आदि के आने पर साइड ही करना पड़ता था, क्योंकि आगे से किसी गाड़ी आदि के आने पर बैल खुद ही किनरिया जाते थे।


 इतना ही नहीं रमेसर काका कभी-कभी बैलगाड़ी पर झपकी भी ले लेते थे और बैल आराम से अपने मार्ग पर बढ़े चले जाते थे। रमेसर काका को घर से निकले लगभग 3-4 घंटे हो चुके थे। रात के 10-11 बज चुके थे और अब वे जिस कच्चे खुरहुरिया रास्ते से जा रहे थे वह रास्ता पूरी तरह से सूना हो गया था। दूर-दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।  


 रात भी अंधेरे में पूरी तरह गहरी नींद में सोने के लिए व्याकुल हो उठी थी। दूर-दूर तक सन्नाटा और उस रास्ते के किनारे उगे हुए बड़े-बड़े घास-फूस और कुछ छोटे-बड़े पेड़ों के सिवा कुछ भी नहीं था। खैर इससे रमेसर काका को क्या फर्क पड़ता था, उन्हें तो इससे भी अँधियारी रात में दूर-दूर तक यहाँ तक की बिहड़ इलाकों से होकर भी जाने की आदत थी। 


बैलों की रफ्तार अब थोड़ी धीमी हो चुकी थी पर वे रूकने वाले नहीं थे, बढ़े चले जा रहे थे अपने मार्ग पर। बैलगाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और रमेसर काका कमर को थोड़ा आराम देने के लिए घिकुरकर झपकी लेना शुरू कर दिए थे। रात के उस सन्नाटे को चीरती बैलों के गलों में बंधी घंटिया बहुत ही मनोहारी ध्वनि उत्पन्न कर रही थीं।


 उस अंधेरी आधी रात में यह सुमधुर ध्वनि किसी को भी नींद की गोद में भेजने के लिए पर्याप्त थी। अचानक पता नहीं क्या हुआ कि बैल ठिठककर रूक गए। बैलों के ठिठककर रूकने से रमेसर काका हड़बड़ाकर उठ बैठे। अंधेरे में उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया। उन्होंने एक बैल की पूँछ पकड़कर जोर से एक आवाज निकाली पर बैल फिर से दो कदम चलकर रूके ही नहीं रुककर थोड़ा पीछे भी हट गए।


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जिससे बैलगाड़ी का संतुलन थोड़ा बिगड़ गया। रमेसर काका किसी अनहोनी की आशंका से तुरत कूदकर बैलों के पास आगे आ गए और बैलों के शरीर पर हाथ फेरते हुए चुचकारने लगे। अब बैल भी थोड़ा शांत होकर खड़े हो गए।  


 इसके बाद रमेसर काका उस रास्ते पर आगे की ओर नजर दौड़ाई पर उस धुत्त अंधेरे में उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया पर हाँ ऐसा जरूर लगा कि आगे शायद कुछ लोग हो-हल्ला कर रहे हैं। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि आगे क्या माजरा है। रमेसर काका को रात-बिरात ऐसी परिस्थितियों से बराबर सामना हो जाता था। दरअसल आगे भूत-प्रेतों का जमावड़ा था और वे इस अंधेरी रात में खेल खेलने में मस्त थे।


खैर रमेसर काका वहीं बैलों के पास ही रूककर आगे का जायजा लेने लगे और मन ही मन इन भूत-प्रेतों को कोस रहे थे कि इन्हें खेलना ही है तो थोड़ा रास्ता छोड़कर खेलते। वे वहीं रूककर इंतजार करने लगे कि भूत-प्रेतों का खेल जल्द से जल्द बंद हो और वे आगे बढ़ें पर 10-15 मिनट तक इंतजार करने के बाद भी भूत-प्रेत रास्ते से हटने का नाम नहीं ले रहे थे और बैल भी अब कितना भी हाँकने पर आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रहे थे।


 रमेसर काका तो पूरी तरह से निडर स्वभाव के थे। उन्हें काहे का डर। और हाँ उनके साथ में दो बैल भी तो थे और उन्हें पता था कि अगर बैल थोड़ा हिम्मत दिखाएँगे तो ये भूत-प्रेत उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। उनके दिमाग में एक विचार आया। वे अब बिना देरी किए बैलों के पगहों को पकड़कर बैलों के आगे-आगे चलने लगे और अब बैल भी उन्हें अपने आगे-आगे चलता देख धीरे-धीरे उनके पीछे हो लिए। 


भूत-प्रेतों के पास पहुँचते ही एक अजीब घटना घटी। वे सारे भूत-प्रेत अब अजीब-अजीब डरावनी आवाजें निकालने लगे। बैल थोड़े सहम से गए थे पर रमेकर काका ने हिम्मत न हारते हुए बैलों को चुचकारते हुए उन्हें आगे खींचने की कोशिश करते रहे। जब रमेसर काका थोड़ा आगे बढ़ते तो भूत-प्रेत भी थोड़ा आगे बढ़ जाते पर रास्ते से हटते नहीं और फिर से भयंकर-भयंकर रूप बनाकर डरावनी आवाजें करते।  


 अब रमेसर काका ने ताल थोंकते हुए उन भूत-प्रेतों को चुनौती दे डाली। उन्होंने कहा कि हिम्मत है तो आगे बढ़ों, पीछे क्यों घिसक रहे हो। एक बड़ा भयंकर प्रेत ने भयानक आवाज करते हुए एकदम से रमेसर काका के पास ही आ गया। रमेसर काका तो पहले से ही पूरी तरह से सतर्क थे, उन्होंने बिना देरी किए एक जोर का लात उस प्रेत को दे मारा और मार पड़ते ही वह प्रेत तिलमिलाकर थोड़ा दूर हट गया।


अब कुछ भूत-प्रेत उस मार्ग के थोड़े किनारे हो गए थे और थोड़े डर-सहम गए तो थे पर अब और भी गुस्सैल लग रहे थे। अब रमेसर काका की बुद्धि भी काम नहीं कर पा रही थी क्योंकि अब तो बैल एकदम से आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रहे थे और इस भयावह अंधेरी रात में इस समय अब किसी व्यक्ति के उस रास्ते से आने-जाने की कोई उम्मीद भी नहीं थी । 




और इधर रमेसर काका सुबह तक का इंतजार भी नहीं करना चाहते थे। रमेसर काका को एक तरकीब सूझी उन्होंने मन ही मन हनुमानजी का नाम लिया और कड़ककर बोले। तुम इतने सारे और मै अकेला, अगर हिम्मत है तो एक-एक करके आओ। तुम सबको देखता हूँ |  


 यह कहते हुए रमेसर काका ठहाका मार कर हँसे और ताली ठोंकने लगे। रमेसर काका का यह रूप देखकर भूतों को लगा कि यह तो उनका मजाक उड़ा रहा है। अचानक वही भयानक प्रेत जिसे रमेसर काका ने एक लात मारा था, आगे बढ़ा। आगे बढ़कर उसने अपने दोस्त भूत-प्रेतों से कहा कि तुम लोग अब तमाशा देखो। कोई भी आगे न बढ़ें, मैं इससे लड़ने के लिए तैयार हूँ। 


रमेसर काका उसकी बात सुनकर थोड़े सहमे पर हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि उन्होंने कितने सारे प्रेतों से टक्कर ली थी और सबको धूल चटाया था। इसके बाद रमेसर काका ने वहाँ खड़े सभी भूत-प्रेतों से कहना शुरू किया कि आप लोगों की यही बात मुझे सबसे अच्छी लगती है कि आप लोग जो जबान देते हो उस पर सदा कायम रहते हो। 


मुझे पूरा यकीन है कि आप में से कोई भी बीच में नहीं आएगा और कौन जीता और कौन हारा इसका भी सही-सही फैसला करेगा। इसके बाद रमेसर काका उस चुनौती स्वीकारने वाले भूत की ओर देखकर बोले कि अगर मैं हार गया तो तूँ जो भी बोलेगा वह मैं करूँगा, सदा के लिए तेरा दास हो जाऊँगा। 


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अब उस भूत से न रहा गया उसने भी ताल ठोंकी और तड़पा, मुझे मंजूर है और अगर मैं भी हार गया तो सदा के लिए तेरा दास हो जाऊँगा। इसके बाद तो बिना देर किए रमेसर काका और उस प्रेत में पटका-पटकी शुरू हो गई। कभी रमेसर काका ऊपर तो कभी वह प्रेत। 10 मिनट तक लड़ते-लड़ते दोनों थकने लगे थे पर एक दूसरे में गुथम-गुत्थी जारी थी।  


 अब रमेसर काका को लगने लगा था कि कहीं वे कमजोर न पड़ जाएँ पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लड़ते-लड़ते धीरे-धीरे पास खड़े बैलों की ओर बढ़ने लगे। अरे यह क्या यह तो रमेसर काका की एक चाल थी जो उस आत्मा पर भारी पड़ चुकी थी।


 दरअसल लड़ते-लड़ते दोनों बैलों के बीच में आते ही पता नहीं बैलों को क्या हुआ कि वे अपनी जगह पर ही रहकर इधर-उधर अपना पैर पटकते-पटकते अभी वह प्रेत कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसे लहुलुहान कर दिए। दरअसल वे दोनों बैल केवल उस प्रेत को ही निशाना बना रहे थे और अपने पैरों से मार-मारकर, कुचल-कुचलकर उसे अधमरा कर दिए। अब क्या उस प्रेत के कमजोर पड़ते ही रमेसर काका उस प्रेत को दोनों बैलों के बीच से खींचकर बाहर लाए ।


उसे लिटाकर उसके सीने पर बैठ गए। भूत-प्रेतों ने ही रमेसर काका के जीत की घोषणा की। अब वह प्रेत रमेसर काका का दास बन चुका था। रमेसर काका के जीवन में यह शायद ऐसी घटना थी जो शायद उस समय के किसी भी इंसान के जीवन में न घटी हो और ना ही भविष्य में घटे। रमेसर काका बहुत खुश थे पर पसीने से पूरी तरह भींग गए थे।


उन्होंने गमछे से अपना पसीना पोछा और उस प्रेत से कहे कि अब हमारे बैलगाड़ी के आगे-आगे चल। अब वह प्रेत करे भी तो क्या, जबान दे चुका था और अपने जबान को तोड़ नहीं सकता था। कुछ दूर चलने के बाद रमेसर काका को लगा कि अगर ऐसे चलते रहे तो कल दिन में 10-11 बजे तक भी बहनोई के गाँव नहीं पहुँच पाएँगे। उनको एक तरकीब सूझी।

  



 उन्होंने बैलगाड़ी के आगे चलते प्रेत को हाँक लगाई और उसे अपने पास बुलाया। अपने पास बुलाने के बाद उन्होंने उस प्रेत से कहा कि तेरी वजह से मैं काफी लेट हो चुका हूँ। अब एक ही उपाय है कि तूँ इस बैलगाड़ी में जुड़ और इसे खींचकर ले चल। अब प्रेत करे भी तो क्या। रमेसर काका ने बैलों को खोलकर उन्हें बैलगाड़ी के पीछे बाँध दिया और उस प्रेत को बैलगाड़ी में जोत दिए।


फिर वह प्रेत बैलगाड़ी को लेकर बढ़ा। जब भी वह प्रेत थोड़ा धीरा होता, रमेसर काका उसकी पीठ पर दो-चार डंडा बजाते और वह तेजी से भागने लगता। भिनसहरे करीब 3-4 बजे ही रमेसर काका अपने बहनोई के घर पहुँच चुके थे। घर के बाहर ही उनके बहनोई का घास-फूस से छाया हुआ एक भुसौला था। रमेसर काका ने अपने बहनोई को जगाना उचित नहीं समझा और उस प्रेत को आदेश देकर सारा भूसा उस भुसौले में रखवा दिया।


प्रेत ने लगभग आधे घंटे में सारा भूसा भुसौले में रख दिया था। बैलगाड़ी खाली हो चुकी थी और रमेसर काका बैलों को बहनोई के ही नाँद पर बाँधकर सानी-पानी कर दिए थे और खुद ही वहीं पड़ी एक बँसखटिया पर सो गए थे। पाँच बजे के करीब जब रमेसर काका के बहनोई जगे तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने देखा की रमेसर तो बँसखटिया पर सोया है। यह कब आया और यह भूसा भी उतारकर भुसौले में रख दिया।


उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, बस सब चमत्कार जैसा लग रहा था। क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। हर बार रमेसर काका के बहनोई खुद रमेसर काका के साथ मिलकर भूसा उतारकर भुसौले में रखते थे। खैर उनको क्या पता कि यह सब किसी भूत का कमाल है। रमेसर काका आराम से जगे।


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पानी-ओनी पिया फिर बैलों को नाद से उकड़ाकर छाँव में बाँध दिया और उसी दिन फिर से रात को खाना-ओना खाकर करीब रात के 11 बजे अपनी बहन के घर से चले। क्योंकि अब उनको पता था कि गाँव पहुँचने में 10-12 घंटे नहीं 5-6 घंटे लगने वाले हैं। जी हाँ फिर से रमेसर काका जब बैलों को जोतकर बैलगाड़ी को लेकर अपने बहनोई के गाँव के बाहर पहुँचे तो सुनसान देखते ही बैलगाड़ी में से बैलों को खोलकर गाड़ी में पीछे बाँध दिए और उस प्रेत को जोता लगाकर गाड़ी में जोत दिए।


सुबह-सुबह रमेसर काका अपने गाँव के पास पहुँच गए थे। अब उनको लगने लगा था कि कहीं कोई यह देख न ले कि बैल तो पीछे बँधे हैं और फिर भी बैलगाड़ी तेजी से आगे की ओर बढ़ रही है, इसलिए उन्होंने उस प्रेत को छुड़ाकर बैलों को गाड़ी में जोत दिया था। रमेसर काका तो अब उस प्रेत से बहुत सारा काम करवाना शुरू कर दिए थे।


पर सदा ध्यान रखते कि इसकी भनक किसी गाँव वाले को न लगे, नहीं तो सब गुड़-गोबर हो जाएगा। आगे क्या हुआ बताएँगे अगली कहानी में। पर यह कहानी भी अपने आप में पूर्ण हो चुकी है।




दोस्तों, आपको इस कहानी को शुरु से लेकर अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। उम्मीद करते है कि आपको यह कहानी Horror Story Sachchi Ghatna, हॉरर स्टोरी सच्ची घटना जरुर पसंद आय होगा। अगर आपको यह कहानी प्संद आया है तो आप इसे शेयर जरुर करें।


धन्यवाद...

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