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Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani। भटकती रुह की सच्ची कहानी।

Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani। भटकती रुह की सच्ची कहानी। आखिर कौन था वह?


दोस्तोंं,अभी जो आप यह कहानी पढ़ने वाले है , इस कहानी का नाम है आखिर कौन थी वह। और यह (Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani भटकती रुह की सच्ची कहानी ) है।  इसलिए आप इसे मात्र 4 से 5 मिनट का समय देकर इसे शुरु से लेकर अंत तक जरुर पढ़ें। अगर आप ऐसा करेंगे तभी आपको यह पता चल पायेगा कि आखिर इस कहानी में ऐसा क्या हुआ है जिसके कारण यह लिखना पड़ रहा है।


तो चलिए इस कहानी को शुरु करते है:-  




आधुनिक समय में भूत-प्रेत अंधविश्वास के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भूत-प्रेतों के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। कुछ लोग (पढ़े-लिखे) जिन्हें भूत-प्रेत पर पूरा विश्वास होता है वे भी इन आत्माओं के अस्तित्व को नकार जाते हैं क्योंकि उनको पता है कि अगर वे किसी से इन बातों का जिक्र किए तो सामने वाला भी (चाहें भले इन बातों को मानता हो पर वह) यही बोलेगा, "पढ़े-लिखे होने के बाद भी, आप ये कैसी बातें कर रहे हैं?" और इस प्रश्न का उत्तर देने और लोगों के सामने अपने को गँवारू समझे जाने से बचने के लिए लोग इन बातों का जिक्र करने से बचते हैं।


मैं आज यहाँ दो वृत्तांत का वर्णन करूँगा जिसको सुनने-पढ़ने के बाद आपको क्या लगता है अवश्य बताएं। खैर मैं भी तो भूत-प्रेत को नहीं मानता पर कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं कि भूत-प्रेत के अस्तित्व को नकारना बनावटी लगता है।


Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani। भटकती रुह की सच्ची कहानी। Excited Indian
Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani



बात कोई 15-16 साल पहले की है। मैं जिस जगह पर काम करता था वहीं पास में एक फ्लैट किराए पर लिया था। इस फ्लैट में मैं अकेले रहता था हाँ पर कभी-कभी कोई मित्र-संबंधी आदि भी आते रहते थे। इस फ्लैट में एक बड़ा-सा हाल था और इसी हाल से संबंध एक बाथरूम और रसोईघर। एक छोटे से परिवार के लिए यह फ्लैट बहुत ही अच्छा था और सबसे खास बात इस फ्लैट कि यह थी कि यह पूरी तरह से खुला-खुला था। मैं आपको बता दूँ कि इस फ्लैट का हाल बहुत बड़ा था और इसके पिछले छोर पर सीसे जड़ित दरवाजे लगे थे।


जिसे आप आसानी से खोल सकते थे। पर मैं इस हाल के पिछले भाग को बहुत कम ही खोलता था क्योंकि कभी-कभी भूलबस अगर यह खुला रह गया तो बंदर आदि आसानी से घर में आ जाते थे और बहुत सारा सामान इधर-उधर कर देते है। आप सोच रहे होंगे कि बंदर आदि कहाँ से आते होंगे तो मैं आप लोगों को बताना भूल गया कि यह  हमारी बिल्डिंग एकदम से एक सुनसान किनारे पर थी और इसके अगल-बगल में बहुत सारे पेड़-पौधे, जंगली झाड़ियाँ आदि थीं। अपने फ्लैट में से नीचे झाँकने पर साँप आदि जानवरों के दर्शन आम बात थी।


एक दिन साम के समय मेरे गाँव का ही एक लड़का जो उसी शहर में किसी दूसरी कंपनी में काम करता था, मुझसे मिलने आया। मैंने उससे कहा कि आज तुम यहीं रूक जाओ और सुबह यहीं से ड्यूटी चले जाना। पर वह बोला कि मेरी ड्यूटी सुबह 7 बजे से होती है इसलिए मुझे 5 बजे जगना पड़ेगा और आप तो 7-8 बजे तक सोए रहते हैं तो कहीं मैं भी सोया रह गया तो मेरी ड्यूटी नहीं हो पाएगी। इस पर मैंने कहा कि कोई बात नहीं। एक काम करते हैं, चार बजे सुबह का एलार्म लगा देते हैं और तूँ जल्दी से जगकर अपने लिए टिफिन भी बना लेना पर हाँ एक काम करना मुझे मत जगाना। इसके बाद वह रहने को तैयार हो गया।


रात को खा-पीकर लगभग 11.30 तक हम लोग सो गए। हम दोनों हाल में ही सोए थे। मैं खाट पर सोया था और वह लड़का लगभग मेरे से 2 मीटर की दूरी पर चट्टाई बिछाकर नीचे ही सोया था। एक बात और रात को सोते समय भी मैं हाल में जीरो वाट का बल्ल जलाकर रखता था।


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अचानक लगभग रात के दो बजे मेरी नींद खुली। यहाँ मैं आप लोगों को बता दूँ कि वास्तव में मेरी नींद खुल गयी थी पर मैं लेटे-लेटे ही मेरी नजर किचन के दरवाजे की ओर चली गई, मैं क्या देखता हूँ कि एक व्यक्ति किचन का दरवाजा खोलकर अंदर गया और मैं कुछ बोलूँ उससे पहले ही फिर से किचन का दरवाजा धीरे-धीरे बंद हो गया।


मुझे इसमें कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि मुझे पता था कि गाँववाला लड़का ड्यूटी के लिए लेट न हो इस चक्कर में जल्दी जग गया होगा। बिना गाँववाले बच्चे की ओर देखे ही ये सब बातें मेरे दिमाग में उठ रही थीं। पर अरे यह क्या फिर से अचानक किचन का दरवाजा खुला और उसमें से एक आदमी निकलकर बाथरूम में घुसा और फिर से बाथरूम का दरवाजा बंद हो गया।


अब तो मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया और चूँकि वह गाँव का लड़का रिश्ते में मेरा लड़का लगता है इसलिए मैंने घड़ी देखी और उसके बिस्तर की ओर देखकर गाली देते हुए बोला कि बेटे अभी तो 3 भी नहीं बजा है और तूँ जगकर खटर-पटर शुरू कर दिया। अरे यह क्या इतना कहते ही अचानक मेरे दिमाग में यह बात आई कि मैं इसे क्यों बोल रहा हूँ यह तो सोया है।


अब तो मैं फटाक से खाट से उठा और दौड़कर उस बच्चे को जगाया, वह आँख मलते हुए उठा पर मैं उसको कुछ बताए बिना सिर्फ इतना ही पूछा कि क्या तूँ 2-3 मिनट पहले जगा था तो वह बोला नहीं तो और वह फिर से सो गया। अब मेरे समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, मैंने हाल में लगे ट्यूब को भी जला दिया था अब पूरे हाल में पूरा प्रकाश था।


और मेरी नजरें अब कभी बाथरूम के दरवाजे पर तो कभी किचन के दरवाजे पर थीं पर किचन और बाथरूम के दरवाजे अब पूरी तरह से बंद थे अब मैं हिम्मत करके उठा और धीरे से जाकर बाथरूम का दरवाजा खोला। बाथरूम छोटा था और उसमें कोई नहीं दिखा इसके बाद मैं किचन का दरवाजा खोला और उसमें भी लगे बल्ब को जला दिया पर वहाँ भी कोई नहीं था अब मैं क्या करूँ। नींद भी एकदम से उड़ चुकी थी।


इस घटना का जिक्र मैंने किसी से नहीं किया। मुझे लगा यह मेरा वहम था और अगर किसी को बताऊँगा तो कोई मेरे रूम में भी शायद आने में डरने लगे। 


इस घटना को बीते लगभग 1 महीने हो गए थे और रात को फिर कभी मुझे ऐसा अनुभव नहीं हुआ। एक दिन मेरे गाँव के दो लोग हमारे पास आए। उनमें से एक को विदेश जाना था और दूसरा उनको छोड़ने आया था। वे लोग रात को मेरे यहाँ ही रूके थे और उस रात मैं अपने एक रिस्तेदार से मिलने चला गया था और रात को वापस नहीं आया।


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सुबह-सुबह जब मैं अपने रूम पर पहुँचा तो वे दोनों लोग तैयार होकर बैठे थे और मेरा ही इंतजार कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे बहुत ही डरे हुए और उदास हों। मेरे आते ही वे लोग बोल पड़े कि अब हम लोग जा रहें हैं। मैंने उन लोगों से पूछा कि फ्लाइट तो कल है तो आज की रात आप लोग कहाँ ठहरेंगे। उनमें से एक ने बोला रोड पर सो लेंगे पर इस कमरे में नहीं। अरे अब अचानक मुझे 1 महीना पहले घटित घटना याद आ गई। मैंने सोचा तो क्या इन लोगों ने भी इस फ्लैट में किसी अजनबी (आत्मा) को देखा?



मैंने उन लोगों से पूछा कि आखिर बात क्या हुई तो उनमें से एक ने कहा कि रात को कोई व्यक्ति आकर मुझे जगाया और बोला कि कंपनी में चलते हैं। मेरा पर्स वहीं छूट गया है। फिर मैं थोड़ा डर गया और इसको भी जगा दिया। इसने भी उस व्यक्ति को देखा वह देखने में एकदम सीधा-साधा लग रहा था और शालीन भी।


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हम लोग एकदम डर गए थे क्योंकि हमें वह व्यक्ति इसके बाद किचन में जाता हुआ दिखाई दिया था और उसके बाद फिर कभी किचन से बाहर नहीं निकला और हमलोगों का डर के मारे बुरा हाल था। हमलोग रातभर बैठकर हनुमान का नाम जपते रहे और उस किचन के दरवाजे की ओर टकटकी लगाकर देखते रहे पर सुबह हो गई है और वह आदमी अभी तक किचन से बाहर नहीं निकला है। 


अब तो मैं भी थोड़ा डर गया और उन दोनों को साथ लेकर तेजी से किचन का दरवाजा खोला पर किचन में तो कोई नहीं था। हाँ पर किचन में गौर से छानबीन करने के बाद हमने पाया कि कुछ तो गड़बड़ है। जी हाँ.... दरअसल फ्रिज खोलने के बाद हमने देखा कि फ्रीज में लगभग जो 1 किलो टमाटर रखे हुए थे वे गायब थे और टमाटर के कुछ बीज, रस आदि वहीं नीचे गिरे हुए थे और इसके साथ ही किचन में एक अजीब गंध फैली हुई थी।


खैर पता नहीं यह हम लोगों को वहम था या वास्तव में कोई आत्मा हमारे रूम में आई थी। मैंने इससे छुटकारा पाने के लिए उस फ्लैट को ही चेंज कर दिया और दूसरे बिल्डिंग में आकर रहने लगे।


तो दोस्तों, आपको यह कहानी (Bhatakati Ruh Ki Sachchi Kahani भटकती रुह की सच्ची कहानी ) शुरु से लेकर अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यावाद। अगर आपको यह कहानी पसंद आया है तो आप इसे अपने यार-दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें।





धन्यवाद... 

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