नैतिक शिक्षाप्रद कहानी (Naitik Shikshaprad Kahani)
दोस्तों, आज का ये कहानी एक प्रकार से एक नैतिक शिक्षाप्रद कहानी (Naitik Shikshaprad Kahani) है। वैसे तो मै इस Page पर बहुत सारा कहानी लिखा हुँ, लेकिन ये कहानी बहुत ही खास है। ये एक ऐसा कहानी है जिसे अगर आप पुरा पढ़ लेते है तो आपका मन खुश हो जायेगा। दोस्तों, इस कहानी का शीर्षक मैं दिया है" भाग्य से बढ़कर पुरुषार्थ है"।
अब आपके मन में ये प्रश्न आ रहा होगा कि मैं ऐसा क्यों बोल रहा हुँ। मैं ऐसा इसलिए बोल रहा हुँ क्योंकि इसके पीछे बहुत ही खास कारण है। और ये कारण आपको तब पता चलेगा जब आप इस कहानी को शुरु से लेकर अंत तक पुरा पढ़ेंगे।
Naitik Shikshaprad Kahani |
तो बस आपको अगले 2 से 3 मिनट तक पुरे ध्यानपुर्वक से इस कहानी को पुरा पढ़ना है। तो फिर चलिए इस कहानी को शुरु करते है?
भाग्य से बढ़कर पुरूषार्थ है
राजा विक्रमादित्य के पास सामुद्रिक लक्षण जानने वाला एक ज्योतिषी पहुँचा। विक्रमादित्य का हाथ देखकर वह चिंतामग्न हो गया। उसके शास्त्र के अनुसार तो राजा दीन,दुर्बल और कंगाल होना चाहिए था,
लेकिन वह तो सम्राट थे, स्वस्थ थे। लक्षणों में ऐसी विपरीत स्थिति संभवतः उसने पहली बार देखी थी। ज्योतिषी की दशा देखकर विक्रमादित्य उसकी मनोदशा समझ गए और बोले कि 'बाहरी लक्षणों से यदि आपको संतुष्टि न मिली हो तो छाती चीरकर दिखाता हूँ, भीतर के लक्षण भी देख लीजिए।' इस पर ज्योतिषी बोला - 'नहीं, महाराज! मैं समझ गया कि आप निर्भय हैं, पुरूषार्थी हैं।
आपमें पूरी क्षमता है। इसीलिए आपने परिस्थितियों को अनुकूल बना लिया है और भाग्य पर विजय प्राप्त कर ली है। यह बात आज मेरी भी समझ में आ गई है कि
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'युग मनुष्य को नहीं बनाता, बल्कि मनुष्य युग का निर्माण करने की क्षमता रखता है यदि उसमें पुरूषार्थ हो, क्योंकि एक पुरूषार्थी मनुष्य में ही हाथ की लकीरों को बदलने की सामाथ्य होती है।'
F.W. Robertson ने कहा है-
It is not the situation which makes the man, but the man makes the situation. The slave may be a free man. The monarch may be a slave…
अर्थात स्थिति एवं दशा मनुष्य का निर्माण नहीं करती, यह तो मनुष्य है जो स्थिति का निर्माण करता है। एक दास स्वतंत्र व्यक्ति हो सकता है और सम्राट एक दास बन सकता है।
उपरोक्त प्रसंग से ये बातें प्रकाश में आती हैं-
सफलता की मुख्य शर्त है- पुरूषार्थ।
पुरूषार्थ करने से ही 'सार्थक जीवन' बनता है, केवल भाग्यवादी रहकर नहीं।
यथार्थ में पुरूषार्थ करने में ही जीवन की सफलता सुनिश्ति है, जबकी व्यक्ति भाग्य के सहारे निष्क्रियता को जन्म देकर अपने सुनहरे अवसर को नष्ट कर देता है।
महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण यदि चाहते तो पांडवों को पलक झपकते ही विजय दिला देते, किन्तु वे नहीं चाहते थे कि बिना कर्म किए उन्हें यश मिले। उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग का पाठ पढ़ाकर उसे युद्ध में संलग्न कराया और फिर विजय-श्री एवं कीर्ति दिलवाकर उसे लोक-परलोक में यशस्वी बनाया।
अतः आप विकास की नई-नई मंजिलें तय करने और उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँचने के लिए अपने पुरूषार्थ को कभी शिथिल न होने दें और पूर्ण उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहें।
पुरूषार्थ उसी में है जो संकट की घड़ी में निर्णय लेने में संकोच नहीं करता।
तो दोस्तों, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने इस कहानी को शुरु से लेकर अंत तक पुरा पढ़ा है। उम्मीद करते है कि जो चीज मैं आपको उपर बताने वाला था वो आपको समझ में आ गया होगा।
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अगर आप इसी तरह का छोटा-छोटा कहानी पढ़कर ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो नीचे मैं बहुत सारे कहानीयों का Link दिया हुँ। अगर आप इन सारे कहानी को एक-एक कर पुरा पढ़ेंगे तो आपके अंदर एक अलग तरह का सकारात्मक उर्जा आयेगा।
धन्यवाद!!!!
इसलिए इस कहानी को जरुर पढ़े:-
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