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Bhutiya Kahani Daravani। भुतिया कहानी डरावनी

Bhutiya Kahani Daravani। भुतिया कहानी डरावनी

नमस्कार दोस्तोंं, अभी जो आप कहानी पढने वाले है इस कहानी का नाम पहलवान का भोग है जो कि एक "Bhutiya Kahani Daravani भुतिया कहानी डरावनी है। आप इसे शुरु से लेकर अंत तक मात्र 4 - 5 मिनट का समय देकर पुरा जरुर पढे‌ं। 


पहलवान का भोग


तो चलिए ज्यादा देरी न करते हुए इस कहानी को शुरु करते है:-



Bhutiya Kahani Daravani। भुतिया कहानी डरावनी। Excited Indian
Bhutiya Kahani Daravani



दोस्तों भूत प्रेत से सम्बंधित घटनाओं में ज्यादातर घटनाये रोंगटे खड़ी कर देती हैं। तो कुछ इतनी मार्मिक होती हैं के दिल भर आता है। लेकिन मेरे जीवन से जुड़ी एक घटना ऐसी भी है जिसे याद करके हंसी आ जाती है। जाने अनजाने में मेरी मम्मी के मामा जी के साथ ये घटना घटी थी। बस थोड़े से आलस की वजह से उनके पीछे ऐसी मुसीबत लगी जिससे उन्हें निजात पाने में सालों लग गए।



वो गाँव में रहा करते थे। उनका नाम तो अच्छा खासा है मगर गाँव में अक्सर चिढ़ाने के लिए जो नाम रख दिया जाता है वो नाम पूरी जिंदगी के लिए पीछे लग जाता है। इसी संक्षिप्तिकरण और मजाक में उनका नाम बचपन में ही लाल जी पड़ गया था। वो इसी नाम से पहचाने जाने लगे।



वो जिस गाँव में रहते थे वो अमेठी से करीब पेंतालिस किलोमीटर दूर पड़ता है। उनका घर गाँव में सबसे किनारे पर था। और उनके घर से करीब ढाई सौ मीटर की दूरी पर रेलवे लाइन थी। और रेलवे लाइन के पार एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था और चबूतरा बना था, उन्हें लोग पहलवान बाबा के अर्थान (पूजा का स्थान) के नाम से जानते थे। सबको उनपर बहुत श्रद्धा थी, जिसका परिणाम भी उन्हें अच्छे के रूप मिलता था। 



स पास के गाँव वाले उनकी पूजा अर्चना करते थे और उनकी कृपा भी खूब देखते थे और आज भी ये सिलसिला वहां जारी है। खैर, वहां वास करने वाले बाबा कोई देवता नहीं थे, वो वही थे जिन्हें लोग शहरो में छलावा कहते हैं। लेकिन एक बहुत लम्बे अंतराल से वो वहां वास करते हैं इसलिए वो बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। उनकी पूजा जो करता है वो उस पेड पर लंगोट और दारु की एक बोतल चढ़ाता है। भूतप्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति वहां जाकर ठीक हो जाते हैं। 



लाल जी भी उन्हें बहुत मानते थे, मगर वे थे थोड़े आलसी किस्म के। जब भी उनकी माता उन्हें उस अर्थान पर चढ़ावा चढाने को कहती तो वे अक्सर टालमटोल करते थे। वहीँ गाँव में एक पंडित जी भी रहते थे, हष्टपुष्ट शरीर वाले और अखाड़ों में उनका बहुत नाम था।



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लोग उन्हें अक्सर पहेलवान पंडित कहते थे। हालाकि को थे तो पंडित मगर ये नाम उनके चरित्र को दूर दूर तक नहीं छूता था। पहलवान होने के कारण अक्सर वो मांस मदिरा का सेवन भी करते थे, लेकिन बहुत ही कम। उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनका एक दस साल का बेटा था बस।



क बार की बात है उनकी पत्नी बेटे को लेकर अपने मायके गयी हुयी थी और वापस आते समय जिस बस से वे वापस आ रही थी वो बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। उनके बेटे ने वहीँ दम तोड़ दिया और उनकी पत्नी ३ दिन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद चल बसी। पुरे गाँव में हफ्ते भर तक शोक का साया था।



तनी बड़ी दुर्घटना पहली बार उस गाँव में घटी थी। पहलवान जी के घर लोगो का ताँता लगा रहता, वो अपने होश हवास से खो बैठे थे। आस पास के जानकार और मित्र आकार उन्हें खाना पानी देते, वरना वो खुद खाना पानी भी नहीं लेते थे। हफ्ते भर बाद धीरे धीरे गाँव के लोग अपनी अपनी दिनचर्या में वापस लौटने लगे और उधर पहलवान जी ने जब खुद को संभाला तो शराब और नशे में डूबे रहने लगे और अपने मित्रो और रिश्तेदारों को भी उन्होंने जाने के लिए कह दिया और अकेले रहा करते थे। पुरे दिन पूरी रात वो नशे में डूबे रहते थे।



धीरे धीरे उनका पहलवान वाला शरीर सूखने लगा और एक महीने के अन्दर वो किसी सामान्य व्यक्ति जेसे दिखाई देने लगे मगर किसी का भी कहा नहीं मानते थे और बस अपनी उसी शराब और परिवार की तस्वीर के साथ घंटो बातें करते थे। करीब एक महीने के बाद अचानक सुबह खेत जाते समय एक व्यक्ति ने खबर दी की पहलवान जी ने रेलवे लाइन पर आत्महत्या कर ली। उनका शरीर दो हिस्सों में वहां पड़ा था।



गाँव के सारे मर्दों ने उन्हें वही से उठाया और ले जाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। और सारे गाँव वालो ने थोडा बहुत मिला जुला कर उनकी अंतिम क्रिया भी करवा दी। बहुत बुरा हुआ था मगर सबने ये सोच लिया की ये तो होना ही था आज नहीं तो कल। या तो वो शराब से बिस्तर पर पड़े पड़े मर जाते या फिर जो हुआ वही होना था। 



खैर जो हुआ उसे ईश्वर की मर्जी मान कर सबने उनकी संपत्ति पंचायत को गाँव के भले में लगाने के लिए दे दी। उधर कुछ एक महीने के बाद लाल जी की माता जी भी चल बसी। और लाल जी को ये बात अच्छी तरह समझा के गयी थी की हर हफ्ते पहलवान बाबा को भोग देना न भूले। उनकी कृपा रहेगी घर पर तो सदैव घर में हरियाली और समृद्धि रहेगी। ये बात लाल जी अच्छी तरह समझ गए थे और उसका पालन भी करते रहे। हफ्ते में एक दिन वो अर्थान पर जाकर भोग अर्पण करके आते थे। और सबकी तरह ही शराब की बोतल से थोड़ी सी शराब वहां चढ़ा कर बाकि बोतल को प्रसाद के रूप वापस लाकर उसका सेवन करते थे।



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रीब छः महीने तक तो उन्होंने इस नियम का पूर्णतया पालन किया। फिर एक दिन वो दुसरे गाँव गए हुए थे किसी परिचित से मिलने वो गाँव उस अर्थान से थोड़ी दूर पर करीब चार सौ मीटर की दुरी पर था, तो उन्होंने देखा की वो व्यक्ति भी पहलवान बाबा को भोग दे रहा था। मगर वो उनके अर्थान पर नहीं गया बस लंगोट और एक कटोरी में शराब रख कर पहलवान बाबा के अर्थान को देखते हुए उसने स्थानीय भाषा में कहा "हे पहलवान बाबा, लो अपना भोग स्वीकार करो।



र फिर शराब को उसी तरफ गिर कर हाथ जोड़ लिए और वापस आकार लाल जी से बात करने लगा। लाल जी ने पूछा की क्या इस तरह से बाबा भोग स्वीकार करते हैं? उसने हाँ में जवाब दिया और बताया की सच्ची श्रद्धा से चढ़ाया गया प्रसाद लेने तो देवता भी धरती पर आ जाते हैं और फिर ये बाबा तो कुछ ही दूर पर निवास करते हैं और अपना भोग स्वीकार भी करते हैं।



लाल जी को ये बात भा गयी, वेसे भी उन्हें रेलवे लाइन पार करके इनती दूर जाना पसंद नहीं था। अब उनका ये सिलसिला शुरू हो गया। वो एक बर्तन में थोड़ी सी शराब और लंगोट लेकर घर के पीछे की तरफ जाते और वहीँ से खड़े होकर जिस तरफ रेलवे लाइन पार पहलवान बाबा का अर्थान था उस तरफ मुंह कर बोलते "पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो।" और वहीँ से चढ़ा कर वापस आ जाते थे। हर हफ्ते वो ऐसा करते थे। इस तरह से भोग देते देते उन्हें करीब ६ महीने बीत गए।



क दिन की बात है पास के गाँव में एक आदमी को प्रेत बाधा हुयी। उसके घर वाले बहुत परेशान थे और वो आदमी पहलवानी कर कर के हर किसी को खुद से दूर रहने की बात कर रहा था। जांघो पर ताल ठोंक ठोंक कर बात कर रहा था। कुछ आदमियों में मिलकर उसे पकड़ने की कोशिश की मगर उसकी पहलवानी के आगे कोई टिक नहीं पा रहा था। किसी तरह गाँव के कई सारे आदमी मिलकर उसके अपने आप शांत होने पर उठा कर उसे पहलवान बाबा के अर्थान पर ले गए। वहां उसे चबूतरे पर बैठाया गया, धीरे धीरे उसने उस पर जैसे दबाव सा बनने लगा और वो वहां मौजूद लोगों ने उससे पूछा की वे कौन है?



सने बताया की वो वहां रेल की पटरी पर रहता है। ये आदमी वहां पर गन्दगी कर रहा था इसलिए उसे पकड़ा है।



लोगों में में से एक ने पूछा के "माफ़ करदो इसे और जाने का क्या लोगे ये बता दो?"


उसने कहा "दारु। दारु पिला दो छोड़ दूंगा।"



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वहां मौजूद लोग तुरंत दारु लेकर आये और उसे दिया। मगर उसने पीने से मना कर दिया। और कहा "ऐसे नहीं, जो मुझे हमेशा देता है बस उससे ही लूँगा।"


जिज्ञासा वश सबने पूछा की वो भोग किस्से लेना चाहेगा। तो उसने बताया की "फलाने गाँव में लाल जी नाम का आदमी है। वो मुझे हमेशा दारु देता है वो देगा तो में तुरंत चला जाऊंगा।



तो दोस्तों, आपको इस "Bhutiya Kahani Daravani। भुतिया कहानी डरवनी" को शुरु से लेकर अंत तक पढने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आशा करते है कि आपको यह कहानी जरुर समझ आया होगा। अगर आपको ये कहानी पसन्द आया है तो आप इसे अपने यार दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें।



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